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श्री हनुमान चालीसा | Hanuman Chalisa Hindi

Updated: Apr 7, 2024

Hanuman chalisa

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरणउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥


बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार॥


जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।

जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥


रामदूत अतुलित बलधामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥


महाबीर बिक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी॥


कंचन वरण विराज सुवेसा।

कानन कुंडल कुञ्चित केसा॥


हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।

काँप मूंज जनेऊ साजै॥


शंकर सुवन केसरी नंदन।

तेज प्रताप महाजगवन॥


विद्यावान गुणी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर॥


प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया॥


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा॥


भीम रूप धरि असुर सँहारे।

रामचंद्र के काज सवारे॥


लाय सजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥


रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥


सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद शारद सहित अहीसा॥


जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।

कवि कोविद कहि सकैं कहाँ ते॥


तुम उपकार सुग्रीवहिं कीहिं।

राम मिलाय राजपद दीहिं॥


तुम्हरो मंत्र विबीषन माना।

लंकेश्वर भए सब जग जाना॥


युग सहस्र योजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥


प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।

जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥


दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥


राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥


सब सुख लहैं तुम्हारी सरना।

तुम रक्षक काहू को डर ना॥


आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें कांपै॥


भूत पिशाच निकट नहीं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै॥


नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा॥


संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥


सब पर राम तपस्वी राजा।

तिन के काज सकल तुम साजा॥


और मनोरथ जो कोई लावै।

सोई अमित जीवन फल पावै॥


चारों युग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा॥


साधु संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे॥


अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता॥


राम रसायन तुम्हरे पासा।

सादा रहो रघुपति के दासा॥


तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम जनम के दुख बिसरावै॥


अन्तकाल रघुबर पुर जाई।

जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥


और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥


संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥


जय जय जय हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥


जो शत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महासुख होई॥


जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा॥


तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय महं डेरा॥


दोहा:


पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥


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