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- How to get UPC Code without sending PORT SMS for Jio, Vi and Airtel users
SMS Request: PORT [Your 10-digit phone number] Send the SMS to the designated number provided by your current service provider, usually 1900. Online Porting Request: If you encounter issues sending the SMS, you can still explore the online porting request option: Visit the official website of your current service provider. Look for the Mobile Number Portability (MNP) or Port Out section. Fill in the required details, including your mobile number. Submit the online porting request. After verification, you may receive the UPC code through email or on the website. Customer Care Support: In case sending an SMS is not feasible, call the customer care helpline of your current service provider. Request the UPC code over the phone, and the customer care executive may guide you through an alternative process. Visit a Retail Outlet: If SMS is not an option, visit a physical store or retail outlet of your current service provider. Request the UPC code from the staff, providing necessary details for verification. Email Request: Check if your service provider allows UPC code requests through email. Send an email to the official customer support email address, mentioning your request for the UPC code. Include relevant details such as your mobile number and account information. Always ensure that you follow the correct format when sending the SMS, as specified by your service provider, to receive the UPC code successfully. If you encounter any difficulties, reach out to your service provider's customer support for assistance.
- MakeMyTrip Sees Big Interest in Lakshadweep, Users Ask to Stop Maldives Bookings
In a recent post on social media, MakeMyTrip shared that searches for Lakshadweep have shot up by a whopping 3,400% after Prime Minister Narendra Modi's visit. The travel company is excited about this interest and is launching a campaign to encourage people to explore India's beautiful beaches. However, not everyone is thrilled. Some users took this chance to ask MakeMyTrip to stop booking trips to the Maldives. They are upset about derogatory remarks made by some Maldivian ministers about PM Modi. MakeMyTrip's post said, "We've seen a 3400% increase in searches for Lakshadweep since the Honorable PM's visit. This interest in Indian beaches inspired us to launch a 'Beaches of India' campaign with special offers. Stay tuned!" But some users weren't having it. They quickly commented, "Cancel flights to the Maldives. That's your only option, or I'm switching to EaseMyTrip." Another user tagged MakeMyTrip's CEO, asking if the company will follow its competitor's bold step in stopping Maldives bookings. This all comes as EaseMyTrip decided to suspend Maldives bookings indefinitely, as announced by their co-founder and Executive Director, Prashant Pitti. Tourism is a big deal for the Maldives, and both India and Russia send lots of visitors there. Nearly a third of the Maldives' economy depends on tourism, says the World Bank. This controversy also happens right as Maldivian President Mohamed Muizzu heads to China on a state visit from January 8-12, a change from the usual first international stop in New Delhi for Maldivian leaders. MakeMyTrip now finds itself caught between people's opinions and international tensions. Will they change their stance on Maldives bookings? We'll have to wait and see.
- Delhi Police Officers Lose Lives in Fatal Collision Amidst Dense Fog near Kundali Border in Sonipat
New Delhi, [Current Date]: In a harrowing incident, two Delhi Police officers lost their lives in a tragic car collision with a truck near the Kundali border in Haryana's Sonipat district. The incident unfolded around 11:30 pm on Monday, shrouded by thick fog, making visibility challenging for the officers on their way home. The deceased officers have been identified as Inspector Dinesh Beniwal, stationed in the Special Staff of the Northwest district, and ATO Inspector Ranveer, posted at Adarsh Nagar police station. The officers were returning to their Sonipat residences in a personal vehicle, as confirmed by the police. The bodies of the officers have been dispatched for post-mortem examination, marking a somber development in the aftermath of this tragic accident. Preliminary investigations conducted by senior Haryana Police officers indicate that the collision occurred when their car inadvertently collided with a parked truck. The dense fog prevailing in the area played a pivotal role, impairing visibility and making it difficult for the officers to discern the stationary truck in their path. The loss of Inspector Dinesh Beniwal and ATO Inspector Ranveer is a profound tragedy, leaving the Delhi Police force and their families in mourning. The authorities are actively engaged in the investigation to determine the circumstances leading to this fatal accident.
- Lal Pan Ki Begam | Hindi Story by Phanishwar Nath Renu
'क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?' बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह में मिट्टी मल रहा था। चंपिया के सिर भी चुड़ैल मँडरा रही है... आधे-आँगन धूप रहते जो गई है सहुआइन की दुकान छोवा-गुड़ लाने, सो अभी तक नहीं लौटी, दीया-बाती की बेला हो गई। आए आज लौटके ज़रा! बागड़ बकरे की देह में कुकुरमाछी लगी थी, इसलिए बेचारा बागड़ रह-रह कर कूद-फाँद कर रहा था। बिरजू की माँ बागड़ पर मन का ग़ुस्सा उतारने का बहाना ढूँढ़ कर निकाल चुकी थी...पिछवाड़े की मिर्च की फूली गाछ! बागड़ के सिवा और किसने कलेवा किया होगा! बागड़ को मारने के लिए वह मिट्टी का छोटा ढेला उठा चुकी थी, कि पड़ोसिन मखनी फुआ की पुकार सुनाई पड़ी—'क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?' 'बिरजू की माँ के आगे नाथ और पीछे पगहिया न हो तब न, फुआ!' गर्म ग़ुस्से में बुझी नुकीली बात फुआ की देह में धँस गई और बिरजू की माँ ने हाथ के ढेले को पास ही फेंक दिया—'बेचारे बागड़ को कुकुरमाछी परेशान कर रही है। आ-हा, आय... आय! हर्र-र-र! आय-आय!' बिरजू ने लेटे-ही-लेटे बागड़ को एक डंडा लगा दिया। बिरजू की माँ की इच्छा हुई कि जा कर उसी डंडे से बिरजू का भूत भगा दे, किंतु नीम के पास खड़ी पनभरनियों की खिलखिलाहट सुन कर रुक गई। बोली, 'ठहर, तेरे बप्पा ने बड़ा हथछुट्टा बना दिया है तुझे! बड़ा हाथ चलता है लोगों पर। ठहर!' मखनी फुआ नीम के पास झुकी कमर से घड़ा उतार कर पानी भर कर लौटती पनभरनियों में बिरजू की माँ की बहकी हुई बात का इंसाफ़ करा रही थी—'ज़रा देखो तो इस बिरजू की माँ को! चार मन पाट (जूट) का पैसा क्या हुआ है, धरती पर पाँव ही नहीं पड़ते! निसाफ़ करो! ख़ुद अपने मुँह से आठ दिन पहले से ही गाँव की गली-गली में बोलती फिरी है, 'हाँ, इस बार बिरजू के बप्पा ने कहा है, बैलगाड़ी पर बिठा कर बलरामपुर का नाच दिखा लाऊँगा। बैल अब अपने घर है, तो हज़ार गाड़ी मँगनी मिल जाएँगी।' सो मैंने अभी टोक दिया, नाच देखनेवाली सब तो औन-पौन कर तैयार हो रही हैं, रसोई-पानी कर रहे हैं। मेरे मुँह में आग लगे, क्यों मैं टोकने गई! सुनती हो, क्या जवाब दिया बिरजू की माँ ने?' मखनी फुआ ने अपने पोपले मुँह के होंठों को एक ओर मोड़ कर ऐठती हुई बोली निकाली—'अर्-र्रे-हाँ-हाँ! बि-र-र-ज्जू की मै...या के आगे नाथ औ-र्र पीछे पगहिया ना हो, तब ना-आ-आ!' जंगी की पुतोहू बिरजू की माँ से नहीं डरती। वह ज़रा गला खोल कर ही कहती है, 'फुआ-आ! सरबे सित्तलर्मिटी (सर्वे सेटलमेंट) के हाकिम के बासा पर फूलछाप किनारीवाली साड़ी पहन के तू भी भंटा की भेंटी चढ़ाती तो तुम्हारे नाम से भी दु-तीन बीघा धनहर ज़मीन का पर्चा कट जाता! फिर तुम्हारे घर भी आज दस मन सोनाबंग पाट होता, जोड़ा बैल ख़रीदता! फिर आगे नाथ और पीछे सैकड़ो पगहिया झूलती!' जंगी की पुतोहू मुँहज़ोर है। रेलवे स्टेशन के पास की लड़की है। तीन ही महीने हुए, गौने की नई बहू हो कर आई है और सारे कुर्मा टोली की सभी झगड़ालू सासों से एकाध मोर्चा ले चुकी है। उसका ससुर जंगी दाग़ी चोर है, सीड़किलासी है। उसका ख़सम रंगी कुर्मा टोली का नामी लठैत। इसीलिए हमेशा सींग घुमाती फिरती है जंगी की पुतोहू! बिरजू की माँ के आँगन में जंगी की पुतोहू की गला-खोल बोली ग़ुलेल की गोलियों की तरह दनदनाती हुई आई थी। बिरजू की माँ ने एक तीख़ा जवाब खोज कर निकाला, लेकिन मन मसोस कर रह गई।...गोबर की ढेरी में कौन ढेला फेंके! जीभ के झाल को गले में उतार कर बिरजू की माँ ने अपनी बेटी चंपिया को आवाज़ दी—'अरी चंपिया-या-या, आज लौटे तो तेरी मूड़ी मरोड़ कर चूल्हे में झोंकती हूँ! दिन-दिन बेचाल होती जाती है!...गाँव में तो अब ठेठर-बैसकोप का गीत गानेवाली पतुरिया-पुतोहू सब आने लगी हैं। कहीं बैठके 'बाजे न मुरलिया' सीख रही होगी ह-र-जा-ई-ई! अरी चंपिया-या-या!' जंगी की पुतोहू ने बिरजू की माँ की बोली का स्वाद ले कर कमर पर घड़े को सँभाला और मटक कर बोली, 'चल दिदिया, चल! इस मुहल्ले में लाल पान की बेगम बसती है! नहीं जानती, दोपहर-दिन और चौपहर-रात बिजली की बत्ती भक्-भक् कर जलती है!' भक्-भक् बिजली-बत्ती की बात सुन कर न जाने क्यों सभी खिलखिला कर हँस पड़ीं। फुआ की टूटी हुई दंत-पंक्तियों के बीच से एक मीठी गाली निकली—'शैतान की नानी!' बिरजू की माँ की आँखों पर मानो किसी ने तेज़ टार्च की रौशनी डाल कर चौंधिया दिया।...भक्-भक् बिजली-बत्ती! तीन साल पहले सर्वे कैंप के बाद गाँव की जलन-ढाही औरतों ने एक कहानी गढ़ के फैलाई थी, चंपिया की माँ के आँगन में रात-भर बिजली-बत्ती भुकभुकाती थी! चंपिया की माँ के आँगन में नाकवाले जूते की छाप घोड़े की टाप की तरह।...जलो, जलो! और जलो! चंपिया की माँ के आँगन में चाँदी-जैसे पाट सूखते देख कर जलनेवाली सब औरतें खलिहान पर सोनोली धान के बोझों को देख कर बैंगन का भुर्ता हो जाएँगी। मिट्टी के बरतन से टपकते हुए छोवा-गुड़ को उँगलियों से चाटती हुई चंपिया आई और माँ के तमाचे खा कर चीख़ पड़ी—'मुझे क्यों मारती है-ए-ए-ए! सहुआइन जल्दी से सौदा नहीं देती है-एँ-एँ-एँ-एँ!' 'सहुआइन जल्दी सौदा नहीं देती की नानी! एक सहुआइन की दुकान पर मोती झरते हैं, जो जड़ गाड़ कर बैठी हुई थी! बोल, गले पर लात दे कर कल्ला तोड़ दूँगी हरजाई, जो फिर कभी 'बाजे न मुरलिया' गाते सुना! चाल सीखने जाती है टीशन की छोकरियों से!' बिरजू के माँ ने चुप हो कर अपनी आवाज़ अंदाज़ी कि उसकी बात जंगी के झोंपड़े तक साफ़-साफ़ पहुँच गई होगी। बिरजू बीती हुई बातों को भूल कर उठ खड़ा हुआ था और धूल झाड़ते हुए बरतन से टपकते गुड़ को ललचाई निगाह से देखने लगा था।...दीदी के साथ वह भी दुकान जाता तो दीदी उसे भी गुड़ चटाती, ज़रुर! वह शकरकंद के लोभ में रहा और माँगने पर माँ ने शकरकंद के बदले... 'ए मैया, एक अँगुली गुड़ दे दे बिरजू ने तलहथी फैलाई—दे ना मैया, एक रत्ती-भर!' 'एक रत्ती क्यों, उठाके बरतन को फेंक आती हूँ पिछवाड़े में, जाके चाटना! नहीं बनेगी मीठी रोटी! ...मीठी रोटी खाने का मुँह होता है बिरजू की माँ ने उबले शकरकंद का सूप रोती हुई चंपिया के सामने रखते हुए कहा, बैठके छिलके उतार, नहीं तो अभी...!' दस साल की चंपिया जानती है, शकरकंद छीलते समय कम-से-कम बारह बार माँ उसे बाल पकड़ कर झकझोरेगी, छोटी-छोटी खोट निकाल कर गालियाँ देगी—'पाँव फैलाके क्यों बैठी है उस तरह, बेलल्जी!' चंपिया माँ के ग़ुस्से को जानती है। बिरजू ने इस मौक़े पर थोड़ी-सी ख़ुशामद करके देखा—'मैया, मैं भी बैठ कर शकरकंद छीलूँ?' 'नहीं?' माँ ने झिड़की दी, 'एक शकरकंद छीलेगा और तीन पेट में! जाके सिद्धू की बहू से कहो, एक घंटे के लिए कड़ाही माँग कर ले गई तो फिर लौटाने का नाम नहीं। जा जल्दी!' मुँह लटका कर आँगन से निकलते-निकलते बिरजू ने शकरकंद और गुड़ पर निगाहें दौड़ाई। चंपिया ने अपने झबरे केश की ओट से माँ की ओर देखा और नज़र बचा कर चुपके से बिरजू की ओर एक शकरकंद फेंक दिया।...बिरजू भागा। 'सूरज भगवान डूब गए। दीया-बत्ती की बेला हो गई। अभी तक गाड़ी... 'चंपिया बीच में ही बोल उठी—'कोयरी टोले में किसी ने गाड़ी नहीं दी मैया! बप्पा बोले, माँ से कहना सब ठीक-ठाक करके तैयार रहें। मलदहिया टोली के मियाँजान की गाड़ी लाने जा रहा हूँ।' सुनते ही बिरजू की माँ का चेहरा उतर गया। लगा, छाते की कमानी उतर गई घोड़े से अचानक। कोयरी टोले में किसी ने गाड़ी मँगनी नहीं दी! तब मिल चुकी गाड़ी! जब अपने गाँव के लोगों की आँख में पानी नहीं तो मलदहिया टोली के मियाँजान की गाड़ी का क्या भरोसा! न तीन में न तेरह में! क्या होगा शकरकंद छील कर! रख दे उठा के!...यह मर्द नाच दिखाएगा। बैलगाड़ी पर चढ़ कर नाच दिखाने ले जाएगा! चढ़ चुकी बैलगाड़ी पर, देख चुकी जी-भर नाच... पैदल जानेवाली सब पहुँच कर पुरानी हो चुकी होंगी। बिरजू छोटी कड़ाही सिर पर औंधा कर वापस आया—'देख दिदिया, मलेटरी टोपी! इस पर दस लाठी मारने पर भी कुछ नहीं होता।' चंपिया चुपचाप बैठी रही, कुछ बोली नहीं, ज़रा-सी मुस्कराई भी नहीं। बिरजू ने समझ लिया, मैया का ग़ुस्सा अभी उतरा नहीं है पूरे तौर से। मढ़ैया के अंदर से बागड़ को बाहर भगाती हुई बिरजू की माँ बड़बड़ाई—'कल ही पँचकौड़ी क़साई के हवाले करती हूँ राकस तुझे! हर चीज़ में मुँह लगाएगा। चंपिया, बाँध दे बागड़ को। खोल दे गले की घंटी! हमेशा टुनुर-टुनुर! मुझे ज़रा नहीं सुहाता है!' 'टुनुर-टुनुर' सुनते ही बिरजू को सड़क से जाती हुई बैलगाड़ियों की याद हो आई—'अभी बबुआन टोले की गाड़ियाँ नाच देखने जा रही थीं... झुनुर-झुनुर बैलों की झुमकी, तुमने सु...' 'बेसी बक-बक मत करो!' बागड़ के गले से झुमकी खोलती बोली चंपिया। 'चंपिया, डाल दे चूल्हे में पानी! बप्पा आवे तो कहना कि अपने उड़नजहाज़ पर चढ़ कर नाच देख आएँ! मुझे नाच देखने का सौख नहीं!...मुझे जगाइयो मत कोई! मेरा माथा दुख रहा है।' मढ़ैया के ओसारे पर बिरजू ने फिसफिसा के पूछा, 'क्यों दिदिया, नाच में उड़नजहाज़ भी उड़ेगा?' चटाई पर कथरी ओढ़ कर बैठती हुई चंपिया ने बिरजू को चुपचाप अपने पास बैठने का इशारा किया, मुफ़्त में मार खाएगा बेचारा! बिरजू ने बहन की कथरी में हिस्सा बाँटते हुए चुक्की-मुक्की लगाई। जाड़े के समय इस तरह घुटने पर ठुड्डी रख कर चुक्की-मिक्की लगाना सीख चुका है वह। उसने चंपिया के कान के पास मुँह ले जा कर कहा, 'हम लोग नाच देखने नहीं जाएँगे?...गाँव में एक पंछी भी नहीं है। सब चले गए।' चंपिया को तिल-भर भी भरोसा नहीं। संझा तारा डूब रहा है। बप्पा अभी तक गाड़ी ले कर नहीं लौटे। एक महीना पहले से ही मैया कहती थी, बलरामपुर के नाच के दिन मीठी रोटी बनेगी, चंपिया छींट की साड़ी पहनेगी, बिरजू पैंट पहनेगा, बैलगाड़ी पर चढ़ कर... चंपिया की भीगी पलकों पर एक बूँद आँसू आ गया। बिरजू का भी दिल भर आया। उसने मन-ही-मन में इमली पर रहनेवाले जिनबाबा को एक बैंगन कबूला, गाछ का सबसे पहला बैंगन, उसने ख़ुद जिस पौधे को रोपा है!...जल्दी से गाड़ी ले कर बप्पा को भेज दो, जिनबाबा! मढ़ैया के अंदर बिरजू की माँ चटाई पर पड़ी करवटें ले रही थी। उँह, पहले से किसी बात का मनसूबा नहीं बाँधना चाहिए किसी को! भगवान ने मनसूबा तोड़ दिया। उसको सबसे पहले भगवान से पूछना है, यह किस चूक का फल दे रहे हो भोला बाबा! अपने जानते उसने किसी देवता-पित्तर की मान-मनौती बाक़ी नहीं रखी। सर्वे के समय ज़मीन के लिए जितनी मनौतियाँ की थीं... ठीक ही तो! महाबीर जी का रोट तो बाक़ी ही है। हाय रे दैव!... भूल-चूक माफ़ करो महाबीर बाबा! मनौती दूनी करके चढ़ाएगी बिरजू की माँ!... बिरजू की माँ के मन में रह-रह कर जंगी की पुतोहू की बातें चुभती हैं, भक्-भक् बिजली-बत्ती!... चोरी-चमारी करनेवाली की बेटी-पुतोहू जलेगी नहीं! पाँच बीघा ज़मीन क्या हासिल की है बिरजू के बप्पा ने, गाँव की भाईखौकियों की आँखों में किरकिरी पड़ गई है। खेत में पाट लगा देख कर गाँव के लोगों की छाती फटने लगी, धरती फोड़ कर पाट लगा है, बैसाखी बादलों की तरह उमड़ते आ रहे हैं पाट के पौधे! तो अलान, तो फलान! इतनी आँखों की धार भला फ़सल सहे! जहाँ पंद्रह मन पाट होना चाहिए, सिर्फ़ दस मन पाट काँटा पर तौल के ओजन हुआ भगत के यहाँ।... इसमें जलने की क्या बात है भला!...बिरजू के बप्पा ने तो पहले ही कुर्मा टोली के एक-एक आदमी को समझा के कहा, 'जिंदगी-भर मज़दूरी करते रह जाओगे। सर्वे का समय आ रहा है, लाठी कड़ी करो तो दो-चार बीघे ज़मीन हासिल कर सकते हो। सो गाँव की किसी पुतखौकी का भतार सर्वे के समय बाबूसाहेब के ख़िलाफ़ खाँसा भी नहीं।...बिरजू के बप्पा को कम सहना पड़ा है! बाबूसाहेब ग़ुस्से से सरकस नाच के बाघ की तरह हुमड़ते रह गए। उनका बड़ा बेटा घर में आग लगाने की धमकी देकर गया।...आख़िर बाबूसाहेब ने अपने सबसे छोटे लड़के को भेजा। बिरजू की माँ को 'मौसी' कहके पुकारा—'यह ज़मीन बाबू जी ने मेरे नाम से ख़रीदी थी। मेरी पढ़ाई-लिखाई इसी ज़मीन की उपज से चलती है।'...और भी कितनी बातें। ख़ूब मोहना जानता है उत्ता ज़रा-सा लड़का। ज़मींदार का बेटा है कि...’ 'चंपिया, बिरजू सो गया क्या? यहाँ आ जा बिरजू, अंदर। तू भी आ जा, चंपिया!... भला आदमी आए तो एक बार आज!' बिरजू के साथ चंपिया अंदर चली गई। 'ढिबरी बुझा दे।... बप्पा बुलाएँ तो जवाब मत देना। खपच्ची गिरा दे।' भला आदमी रे, भला आदमी! मुँह देखो ज़रा इस मर्द का!...बिरजू की माँ दिन-रात मंझा न देती रहती तो ले चुके थे ज़मीन! रोज़ आ कर माथा पकड़ के बैठ जाएँ, 'मुझे ज़मीन नहीं लेनी है बिरजू की माँ, मजूरी ही अच्छी।'...जवाब देती थी बिरजू की माँ ख़ूब सोच-समझके, 'छोड़ दो, जब तुम्हारा कलेजा ही स्थिर नहीं होता है तो क्या होगा? जोरु-ज़मीन ज़ोर के, नहीं तो किसी और के!...’ बिरजू के बाप पर बहुत तेज़ी से ग़ुस्सा चढ़ता है। चढ़ता ही जाता है।...बिरजू की माँ का भाग ही ख़राब है, जो ऐसा गोबरगणेश घरवाला उसे मिला। कौन-सा सौख-मौज दिया है उसके मर्द ने? कोल्हू के बैल की तरह खट कर सारी उम्र काट दी इसके यहाँ, कभी एक पैसे की जलेबी भी ला कर दी है उसके खसम ने!...पाट का दाम भगत के यहाँ से ले कर बाहर-ही-बाहर बैल-हट्टा चले गए। बिरजू की माँ को एक बार नमरी लोट देखने भी नहीं दिया आँख से।...बैल ख़रीद लाए। उसी दिन से गाँव में ढिंढोरा पीटने लगे, बिरजू की माँ इस बार बैलगाड़ी पर चढ़ कर जाएगी नाच देखने!...दूसरे की गाड़ी के भरोसे नाच दिखाएगा!... अंत में उसे अपने-आप पर क्रोध हो आया। वह ख़ुद भी कुछ कम नहीं! उसकी जीभ में आग लगे! बैलगाड़ी पर चढ़ कर नाच देखने की लालसा किस कुसमय में उसके मुँह से निकली थी, भगवान जाने! फिर आज सुबह से दोपहर तक, किसी-न-किसी बहाने उसने अठारह बार बैलगाड़ी पर नाच देखने की चर्चा छेड़ी है।...लो, ख़ूब देखो नाच! कथरी के नीचे दुशाले का सपना!...कल भोरे पानी भरने के लिए जब जाएगी, पतली जीभवाली पतुरिया सब हँसती आएँगी, हँसती जाएँगी।...सभी जलते है उससे, हाँ भगवान, दाढ़ीजार भी! दो बच्चों की माँ हो कर भी वह जस-की-तस है। उसका घरवाला उसकी बात में रहता है। वह बालों में गरी का तेल डालती है। उसकी अपनी ज़मीन है। है किसी के पास एक घूर ज़मीन भी अपने इस गाँव में! जलेंगे नहीं, तीन बीघे में धान लगा हुआ है, अगहनी। लोगों की बिखदीठ से बचे, तब तो! बाहर बैलों की घंटियाँ सुनाई पड़ीं। तीनों सतर्क हो गए। उत्कर्ण होकर सुनते रहे। 'अपने ही बैलों की घंटी है, क्यों री चंपिया?' चंपिया और बिरजू ने प्राय: एक ही साथ कहा, 'हूँ-ऊँ-ऊँ!' 'चुप बिरजू की माँ ने फिसफिसा कर कहा, शायद गाड़ी भी है, घड़घड़ाती है न?' 'हूँ-ऊँ-ऊँ!' दोनों ने फिर हुँकारी भरी। 'चुप! गाड़ी नहीं है। तू चुपके से टट्टी में छेद करके देख तो आ चंपी! भागके आ, चुपके-चुपके।' चंपिया बिल्ली की तरह हौले-हौले पाँव से टट्टी के छेद से झाँक आई—'हाँ मैया, गाड़ी भी है!' बिरजू हड़बड़ा कर उठ बैठा। उसकी माँ ने उसका हाथ पकड़ कर सुला दिया—'बोले मत!' चंपिया भी गुदड़ी के नीचे घुस गई। बाहर बैलगाड़ी खोलने की आवाज़ हुई। बिरजू के बाप ने बैलों को ज़ोर से डाँटा—'हाँ-हाँ! आ गए घर! घर आने के लिए छाती फटी जाती थी!' बिरजू की माँ ताड़ गई, ज़रुर मलदहिया टोली में गाँजे की चिलम चढ़ रही थी, आवाज़ तो बड़ी खनखनाती हुई निकल रही है। 'चंपिया-ह!' बाहर से पुकार कर कहा उसके बाप ने, 'बैलों को घास दे दे, चंपिया-ह!' अंदर से कोई जवाब नहीं आया। चंपिया के बाप ने आँगन में आ कर देखा तो न रौशनी, न चराग़, न चूल्हे में आग।...बात क्या है! नाच देखने, उतावली हो कर, पैदल ही चली गई क्या...! बिरजू के गले में खसखसाहट हुई और उसने रोकने की पूरी कोशिश भी की, लेकिन खाँसी जब शुरु हुई तो पूरे पाँच मिनट तक वह खाँसता रहा। 'बिरजू! बेटा बिरजमोहन!' बिरजू के बाप ने पुचकार कर बुलाया, मैया ग़ुस्से के मारे सो गई क्या?...अरे अभी तो लोग जा ही रहे हैं।' बिरजू की माँ के मन में आया कि कस कर जवाब दे, नहीं देखना है नाच! लौटा दो गाड़ी! 'चंपिया-ह! उठती क्यों नहीं? ले, धान की पँचसीस रख दे। धान की बालियों का छोटा झब्बा झोंपड़े के ओसरे पर रख कर उसने कहा, 'दीया बालो!' बिरजू की माँ उठ कर ओसारे पर आई—'डेढ़ पहर रात को गाड़ी लाने की क्या ज़रुरत थी? नाच तो अब ख़त्म हो रहा होगा।' ढिबरी की रौशनी में धान की बालियों का रंग देखते ही बिरजू की माँ के मन का सब मैल दूर हो गया। ...धानी रंग उसकी आँखों से उतर कर रोम-रोम में घुल गया। 'नाच अभी शुरु भी नहीं हुआ होगा। अभी-अभी बलमपुर के बाबू की संपनी गाड़ी मोहनपुर होटिल-बँगला से हाकिम साहब को लाने गई है। इस साल आख़िरी नाच है।... पँचसीस टट्टी में खोंस दे, अपने खेत का है।' 'अपने खेत का? हुलसती हुई बिरजू की माँ ने पूछा, पक गए धान?' 'नहीं, दस दिन में अगहन चढ़ते-चढ़ते लाल हो कर झुक जाएँगी सारे खेत की बालियाँ! ...मलदहिया टोली पर जा रहा था, अपने खेत में धान देख कर आँखें जुड़ा गईं। सच कहता हूँ, पँचसीस तोड़ते समय उँगलियाँ काँप रही थीं मेरी!' बिरजू ने धान की एक बाली से एक धान ले कर मुँह में डाल लिया और उसकी माँ ने एक हल्की डाँट दी—'कैसा लुक्क्ड़ है तू रे!...इन दुश्मनों के मारे कोई नेम-धरम बचे!' 'क्या हुआ, डाँटती क्यों है?' 'नवान्न के पहले ही नया धान जुठा दिया, देखते नहीं?' 'अरे, इन लोगों का सब कुछ माफ़ है। चिरई-चुरमुन हैं यह लोग! दोनों के मुँह में नवान्न के पहले नया अन्न न पड़े?' इसके बाद चंपिया ने भी धान की बाली से दो धान लेकर दाँतों-तले दबाए—'ओ मैया! इतना मीठा चावल!' 'और गमकता भी है न दिदिया?' बिरजू ने फिर मुँह में धान लिया। 'रोटी-पोटी तैयार कर चुकी क्या?' बिरजू के बाप ने मुस्कुराकर पूछा। 'नहीं!' मान-भरे सुर में बोली बिरजू की माँ, 'जाने का ठीक-ठिकाना नहीं... और रोटी बनाती!' 'वाह! ख़ूब हो तुम लोग!...जिसके पास बैल है, उसे गाड़ी मँगनी नहीं मिलेगी भला? गाड़ीवालों को भी कभी बैल की ज़रुरत होगी।...पूछूँगा तब कोयरी-टोला वालों से!...ले, जल्दी से रोटी बना ले।' 'देर नहीं होगी!' 'अरे, टोकरी भर रोटी तो तू पलक मारते बना देती है, पाँच रोटियाँ बनाने में कितनी देर लगेगी!' अब बिरजू की माँ के होंठों पर मुस्कुराहट खुल कर खिलने लगी। उसने नज़र बचा कर देखा, बिरजू का बप्पा उसकी ओर एकटक निहार रहा है।...चंपिया और बिरजू न होते तो मन की बात हँस कर खोलने में देर न लगती। चंपिया और बिरजू ने एक-दूसरे को देखा और ख़ुशी से उनके चेहरे जगमगा उठे—'मैया बेकार ग़ुस्सा हो रही थी न!' 'चंपी! ज़रा घैलसार में खड़ी हो कर मखनी फुआ को आवाज़ दे तो!' 'ऐ फू-आ-आ! सुनती हो फूआ-आ! मैया बुला रही है!' फुआ ने कोई जवाब नहीं दिया, किंतु उसकी बड़बड़ाहट स्पष्ट सुनाई पड़ी—'हाँ! अब फुआ को क्यों गुहारती है? सारे टोले में बस एक फुआ ही तो बिना नाथ-पगहियावाली है।' 'अरी फुआ!' बिरजू की माँ ने हँस कर जवाब दिया, 'उस समय बुरा मान गई थी क्या? नाथ-पगहियावाले को आ कर देखो, दोपहर रात में गाड़ी लेकर आया है! आ जाओ फुआ, मैं मीठी रोटी पकाना नहीं जानती।' फुआ काँखती-खाँसती आई—'इसी के घड़ी-पहर दिन रहते ही पूछ रही थी कि नाच देखने जाएगी क्या? कहती, तो मैं पहले से ही अपनी अँगीठी यहाँ सुलगा जाती।' बिरजू की माँ ने फुआ को अँगीठी दिखला दी और कहा, 'घर में अनाज-दाना वग़ैरह तो कुछ है नहीं। एक बागड़ है और कुछ बरतन-बासन, सो रात-भर के लिए यहाँ तंबाकू रख जाती हूँ। अपना हुक्का ले आई हो न फुआ?' फुआ को तंबाकू मिल जाए, तो रात-भर क्या, पाँच रात बैठ कर जाग सकती है। फुआ ने अँधेरे में टटोल कर तंबाकू का अंदाज किया...ओ-हो! हाथ खोल कर तंबाकू रखा है बिरजू की माँ ने! और एक वह है सहुआइन! राम कहो! उस रात को अफ़ीम की गोली की तरह एक मटर-भर तंबाकू रख कर चली गई गुलाब-बाग मेले और कह गई कि डिब्बी-भर तंबाकू है। बिरजू की माँ चूल्हा सुलगाने लगी। चंपिया ने शकरकंद को मसल कर गोले बनाए और बिरजू सिर पर कड़ाही औंधा कर अपने बाप को दिखलाने लगा—'मलेटरी टोपी! इस पर दस लाठी मारने पर भी कुछ नहीं होगा!' सभी ठठा कर हँस पड़े। बिरजू की माँ हँस कर बोली, 'ताखे पर तीन-चार मोटे शकरकंद हैं, दे दे बिरजू को चंपिया, बेचारा शाम से ही...' 'बेचारा मत कहो मैया, ख़ूब सचारा है' अब चंपिया चहकने लगी, 'तुम क्या जानो, कथरी के नीचे मुँह क्यों चल रहा था बाबू साहब का!' 'ही-ही-ही!' बिरजू के टूटे दूध के दाँतो की फाँक से बोली निकली, 'बिलैक-मारटिन में पाँच शकरकंद खा लिया! हा-हा-हा!' सभी फिर ठठाकर हँस पड़े। बिरजू की माँ ने फुआ का मन रखने के लिए पूछा, 'एक कनवाँ गुड़ है। आधा दूँ फुआ?' फुआ ने गदगद हो कर कहा, 'अरी शकरकंद तो ख़ुद मीठा होता है, उतना क्यों डालेगी?' जब तक दोनों बैल दाना-घास खा कर एक-दूसरे की देह को जीभ से चाटें, बिरजू की माँ तैयार हो गई। चंपिया ने छींट की साड़ी पहनी और बिरजू बटन के अभाव में पैंट पर पटसन की डोरी बँधवाने लगा। बिरजू के माँ ने आँगन से निकल गाँव की ओर कान लगा कर सुनने की चेष्टा की—'उँहुँ, इतनी देर तक भला पैदल जानेवाले रुके रहेंगे?' पूर्णिमा का चाँद सिर पर आ गया है।...बिरजू की माँ ने असली रुपा का मँगटिक्का पहना है आज, पहली बार। बिरजू के बप्पा को हो क्या गया है, गाड़ी जोतता क्यों नहीं, मुँह की ओर एकटक देख रहा है, मानो नाच की लालपान की... गाड़ी पर बैठते ही बिरजू की माँ की देह में एक अजीब गुदगुदी लगने लगी। उसने बाँस की बल्ली को पकड़ कर कहा, 'गाड़ी पर अभी बहुत जगह है।...ज़रा दाहिनी सड़क से गाड़ी हाँकना।' बैल जब दौड़ने लगे और पहिया जब चूँ-चूँ करके घरघराने लगा तो बिरजू से नहीं रहा गया—'उड़नजहाज़ की तरह उड़ाओ बप्पा!' गाड़ी जंगी के पिछवाड़े पहुँची। बिरजू की माँ ने कहा, 'ज़रा जंगी से पूछो न, उसकी पुतोहू नाच देखने चली गई क्या?' गाड़ी के रुकते ही जंगी के झोंपड़े से आती हुई रोने की आवाज़ स्पष्ट हो गई। बिरजू के बप्पा ने पूछा, 'अरे जंगी भाई, काहे कन्न-रोहट हो रहा है आँगन में?' जंगी घूर ताप रहा था, बोला, 'क्या पूछते हो, रंगी बलरामपुर से लौटा नहीं, पुतोहिया नाच देखने कैसे जाए! आसरा देखते-देखते उधर गाँव की सभी औरतें चली गई।' 'अरी टीशनवाली, तो रोती है काहे!' बिरजू की माँ ने पुकार कर कहा, 'आ जा झट से कपड़ा पहन कर। सारी गाड़ी पड़ी हुई है! बेचारी!...आ जा जल्दी!' बग़ल के झोंपड़े से राधे की बेटी सुनरी ने कहा, 'काकी, गाड़ी में जगह है? मैं भी जाऊँगी।' बाँस की झाड़ी के उस पार लरेना खवास का घर है। उसकी बहू भी नहीं गई है। गिलट का झुमकी-कड़ा पहन कर झमकती आ रही है। 'आ जा! जो बाक़ी रह गई हैं, सब आ जाएँ जल्दी!' जंगी की पुतोहू, लरेना की बीवी और राधे की बेटी सुनरी, तीनों गाड़ी के पास आई। बैल ने पिछला पैर फेंका। बिरजू के बाप ने एक भद्दी गाली दी—'साला! लताड़ मार कर लँगड़ी बनाएगा पुतोहू को!' सभी ठठाकर हँस पड़े। बिरजू के बाप ने घूँघट में झुकी दोनों पुतोहूओं को देखा। उसे अपने खेत की झुकी हुई बालियों की याद आ गई। जंगी की पुतोहू का गौना तीन ही मास पहले हुआ है। गौने की रंगीन साड़ी से कड़वे तेल और लठवा-सिंदूर की गंध आ रही है। बिरजू की माँ को अपने गौने की याद आई। उसने कपड़े की गठरी से तीन मीठी रोटियाँ निकाल कर कहा, 'खा ले एक-एक करके। सिमराहा के सरकारी कूप में पानी पी लेना।' गाड़ी गाँव से बाहर हो कर धान के खेतों के बग़ल से जाने लगी। चाँदनी, कातिक की!...खेतों से धान के झरते फूलों की गंध आती है। बाँस की झाड़ी में कहीं दुद्धी की लता फूली है। जंगी की पुतोहू ने एक बीड़ी सुलगा कर बिरजू की माँ की ओर बढ़ाई। बिरजू की माँ को अचानक याद आई चंपिया, सुनरी, लरेना की बीवी और जंगी की पुतोहू, ये चारों ही गाँव में बैसकोप का गीत गाना जानती हैं।...ख़ूब! गाड़ी की लीक धनखेतों के बीच हो कर गई। चारों ओर गौने की साड़ी की खसखसाहट-जैसी आवाज़ होती है।...बिरजू की माँ के माथे के मँगटिक्के पर चाँदनी छिटकती है। 'अच्छा, अब एक बैसकोप का गीत गा तो चंपिया!...डरती है काहे? जहाँ भूल जाओगी, बग़ल में मासटरनी बैठी ही है!' दोनों पुतोहुओं ने तो नहीं, किंतु चंपिया और सुनरी ने खँखार कर गला साफ़ किया। बिरजू के बाप ने बैलों को ललकारा—'चल भैया! और ज़रा ज़ोर से!...गा रे चंपिया, नहीं तो मैं बैलों को धीरे-धीरे चलने को कहूँगा।' जंगी की पुतोहू ने चंपिया के कान के पास घूँघट ले जा कर कुछ कहा और चंपिया ने धीमे से शुरु किया—'चंदा की चाँदनी...' बिरजू को गोद में ले कर बैठी उसकी माँ की इच्छा हुई कि वह भी साथ-साथ गीत गाए। बिरजू की माँ ने जंगी की पुतोहू को देखा, धीरे-धीरे गुनगुना रही है वह भी। कितनी प्यारी पुतोहू है! गौने की साड़ी से एक ख़ास क़िस्म की गंध निकलती है। ठीक ही तो कहा है उसने! बिरजू की माँ बेगम है, लालपान की बेगम! यह तो कोई बुरी बात नहीं। हाँ, वह सचमुच लाल पान की बेगम है! बिरजू की माँ ने अपनी नाक पर दोनों आँखों को केंद्रित करने की चेष्टा करके अपने रुप की झाँकी ली, लाल साड़ी की झिलमिल किनारी, मँगटिक्का पर चाँद।...बिरजू की माँ के मन में अब और कोई लालसा नहीं। उसे नींद आ रही है। स्रोत : पुस्तक : हिन्दी कहानी संग्रह (पृष्ठ 23) संपादक : भीष्म साहनी रचनाकार : फणीश्वरनाथ रेणु प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- Security Breach Shakes Parliament during Winter Session: Intruders were carrying tear gas canisters.
In a shocking turn of events during the tenth day of the Winter Session, chaos erupted in the Lok Sabha as two individuals breached security and jumped into the chamber from the public gallery. The incident occurred on Wednesday, 13 December, mirroring the unfortunate events of the 2001 Parliament attack anniversary. According to Congress MP Adhir Ranjan Chowdhury, the intruders were carrying tear gas canisters. The House was swiftly adjourned after the security breach, which took place while crucial proceedings for the Winter Session were underway. Sansad TV captured the startling visuals, showing a man in a blue jacket leaping over benches in the Lok Sabha. Rajendra Agrawal, presiding over the session, immediately adjourned the proceedings in response to the breach. Adding to the chaos, two protesters were spotted outside the House, engaging in sloganeering. The accused individuals, responsible for the security breach, set off colored smoke canisters both inside and outside the Parliament. Prompt action by security personnel resulted in the swift arrest of all involved parties. The Central Universities (Amendment) Bill, Repealing and Amending Bill, and three reports of the Department-related Parliamentary Standing Committees on Education, Women, Children, Youth, and Sports are among the significant businesses scheduled for discussion during the Winter Session. The incident has raised serious concerns about the security measures in place within the Parliament premises. As investigations unfold, the nation awaits further updates on this unprecedented breach in one of the highest seats of power. Stay tuned for more LIVE updates on this developing story.
- Tata Neu Credit Card Referral Code | Earn ₹500 Neucoins with Invite code - CHET1343
Tata Neu, a leading player in the financial services sector, has introduced an exciting referral program for its Neu Credit Card users. The program allows both Infinity and Plus credit card variants to earn substantial rewards by referring friends and family to join the Tata Neu credit card community. You can use the invite code CHET1343, users can enjoy a host of benefits, including earning ₹500 Neucoins for each successful referral. How it Works: The Tata Neu Credit Card referral program is a simple and effective way for cardholders to boost their earnings. Here's a step-by-step guide on how to participate and make the most of this opportunity: Apply for Tata Neu Credit Card: To get started, users need to apply for either the Infinity or Plus credit card variant through the Tata Neu app. The application process is user-friendly, ensuring a seamless experience. Enter Invite Code: Use code CHET1343 while applying for the credit card and earn ₹500 Neucoins, every neucoins is eqauls to 1 rupee. You will earn ₹500 after entering invite code CHET1343. Generate Your Invite Code: Upon successful approval and activation of the Tata Neu Credit Card, users can generate their unique invite code as the key to unlocking additional rewards. Share the Invite Code: Share the invite code with friends, family, and acquaintances who might be interested in availing the benefits of the Tata Neu Credit Card. This could include exclusive offers, rewards, and a range of financial perks. Earn ₹500 Neucoins per Referral: For every successful referral made using the invite code, users will be rewarded with ₹500 worth of Neucoins. These Neucoins can be utilized within the Tata Neu app for various purposes, including bill payments, shopping, or even converting them into cash rewards. Referral Tiers for Higher Rewards: The referral program doesn't stop at just ₹500 Neucoins per referral. This creates an opportunity for users to potentially earn up to ₹1 lakh monthly through successful referrals. Conclusion: Tata Neu's Credit Card Referral Program with the invite code CHET1343 presents an excellent opportunity for users to not only enjoy the perks of the Tata Neu Credit Card but also earn significant rewards through successful referrals. With the potential to earn up to ₹1 lakh monthly, this program adds an extra layer of value to the Tata Neu Credit Card, making it a compelling choice for individuals seeking financial benefits and exclusive rewards.
- Ranbir Kapoor's 'Animal' Home is Saif Ali Khan's Pataudi Palace - A Whopping 800 Crore Property!
In an unexpected revelation, the fancy house portrayed as Ranbir Kapoor's residence in the recent hit movie 'Animal' is actually Saif Ali Khan's Pataudi Palace, located near Delhi. This luxurious property, estimated at a staggering Rs 800 crore, brings an interesting angle to the film's storyline. Interestingly, this isn't the first time Pataudi Palace has graced the silver screen; it was also featured in Shah Rukh Khan and Preity Zinta's 'Veer-Zaara.' It seems the regal charm of this estate has become a popular choice for Bollywood filmmakers. Anil Kapoor, playing a wealthy character in 'Animal,' finds his on-screen home in this lavish palace. The film, centered around Ranbir Kapoor as Anil Kapoor's son, has generated buzz not only for its plot but also for the revelation of the grand setting behind the scenes. To add to the intrigue, Kareena Kapoor Khan has been sharing glimpses of Pataudi Palace through her Instagram stories, giving fans a virtual tour of the impressive property. The Kapoor-Khan connection adds a personal touch to the whole spectacle, blending real-life relationships with on-screen extravagance. As fans continue to appreciate the glitz and glamour of 'Animal,' the revelation about Pataudi Palace being a part of the film has heightened the overall allure. The fusion of reality and fiction within the walls of this majestic property has sparked conversations and left audiences eager to witness the grandeur unfold on the big screen. Stay tuned for more behind-the-scenes insights into the glitzy world of Bollywood, where the line between real and reel life often blurs in the most unexpected ways!
- Railways Announces Special Trains Between Dadar and Adilabad on BR Ambedkar's 67th Death Anniversary
Railway Administration Appeals Passengers to Travel with Valid Tickets to Ensure Smooth Journey In a bid to accommodate the surge of passengers commemorating the 67th Mahaparinirvan Diwas of Dr. B.R. Ambedkar, the Indian Railways has announced the operation of special trains between Dadar and Adilabad. The Railway administration has urged passengers to make use of these special services and ensure they possess valid tickets to avoid any inconvenience during their journey. Details of the Special Trains: Special Train No. 07058: Departure from Adilabad at 07:00 hrs on Tuesday, December 5, 2023, reaching Dadar at 03:30 hrs the next day. Special Train No. 07057: Departure from Dadar at 01:05 hrs on Thursday, December 7, 2023, arriving at Adilabad at 19:00 hrs on the same day. Halts: The special trains will make stops at Adilabad, Kinwat, Himayatnagar, Bhokar, Mudkhed, Hazur Sahib Nanded, Purna, Parbhani, Manwat Road, Selu, Partur, Jalna, Aurangabad, Lasur, Rotegaon, Nagarsol, Manmad, Nasik, Igatpuri, Kalyan, and Dadar. Composition: The composition of these special trains includes 14 General Second Class coaches, along with two guard's brake vans. Passenger Advisory: The Railway administration has issued an advisory, requesting passengers to avail themselves of the special services and travel with valid tickets to ensure a hassle-free journey. This initiative has been taken to manage the anticipated increase in passenger traffic on the occasion of Mahaparinirvan Diwas. Commuters are advised to plan their travel accordingly, considering the announced schedules and halts. The Indian Railways is committed to providing a safe and efficient travel experience for passengers during this significant event.
- How to Make Authentic and Delicious Aloo Gobi Recipe at Home
Indian cuisine is a vibrant tapestry of flavors, and within its rich tapestry, the dish known as Aloo Gobi stands out as a delightful and comforting classic. Aloo Gobi, translating to "Potatoes and Cauliflower," is a vegetarian dish that has earned its place as a beloved staple in Indian households and a favorite on dining tables around the world. Ingredients: Potatoes - 2 medium-sized, peeled and cubed Cauliflower - 1 medium-sized, cut into florets Onion - 1 large, finely chopped Tomatoes - 2 medium-sized, finely chopped Green Chilies - 2, slit Ginger - 1-inch piece, finely grated Garlic - 3 cloves, minced Cumin Seeds - 1 teaspoon Turmeric Powder - 1/2 teaspoon Coriander Powder - 1 teaspoon Cumin Powder - 1/2 teaspoon Red Chili Powder - 1/2 teaspoon Garam Masala - 1/2 teaspoon Fresh Coriander Leaves - a handful, chopped Cooking Oil - 2 tablespoons Salt - to taste Instructions: Prepare the Vegetables: Peel and cube the potatoes, and cut the cauliflower into bite-sized florets. Saute the Aromatics: Heat oil in a pan and add cumin seeds. Once they splutter, add chopped onions, green chilies, ginger, and garlic. Saute until the onions turn golden brown. Add Spices: Introduce turmeric powder, coriander powder, cumin powder, and red chili powder. Stir well to coat the aromatics with the spices. Incorporate Tomatoes: Add chopped tomatoes and cook until they turn soft and the oil starts to separate. Introduce Potatoes and Cauliflower: Toss in the cubed potatoes and cauliflower florets. Mix thoroughly to coat them with the spice mixture. Cooking Time: Cover the pan and let the vegetables cook on medium heat. Stir occasionally to prevent sticking. Seasoning: Once the potatoes and cauliflower are tender, add salt and garam masala. Stir gently to blend the flavors. Garnish: Sprinkle fresh coriander leaves over the Aloo Gobi for a burst of freshness. Serve Hot: Aloo Gobi is best enjoyed hot, served with Indian bread like chapati or naan, or as a delightful side dish to complement any meal.
- What is Mahaparinirvan Diwas?
Mahaparinirvan Diwas in Buddhism: "MahaParinirvana" in Buddhism marks the final nirvana, the complete liberation from the cycle of birth and death. This profound event is particularly associated with the death of Siddhartha Gautama, the historical Buddha. Mahaparinirvan Diwas, observed on the 15th day of the lunar month of Kartik (usually in December), is a day of reflection and remembrance for Buddhists worldwide. On Mahaparinirvan Diwas, Buddhists visit temples, offer prayers, and engage in meditation, reflecting on the impermanence of life and the Buddha's teachings. It's a time for devotees to renew their commitment to the principles of Buddhism and strive for spiritual awakening. Mahaparinirvan Diwas in the Context of Dr. B.R. Ambedkar: In the context of B.R. Ambedkar, Mahaparinirvan Diwas is the death anniversary of the social reformer and principal architect of the Indian Constitution, Dr. Bhimrao Ramji Ambedkar. He passed away on December 6, 1956. Mahaparinirvan Diwas for Dr. Ambedkar is observed annually on December 6th to commemorate his contributions to social justice and the upliftment of marginalized communities. Events, discussions, and cultural programs are organized to pay tribute to his legacy, emphasizing principles of equality, human rights, and social justice. Mahaparinirvan Diwas serves as a dual commemoration, honoring the Buddha's attainment of liberation and Dr. Ambedkar's tireless efforts towards social equality. Both occasions emphasize reflection, remembrance, and a commitment to the principles that guide individuals towards personal and societal enlightenment. As devotees reflect on impermanence and social justice, Mahaparinirvan Diwas stands as a reminder of the enduring impact of spiritual teachings and the ongoing quest for a just and compassionate society.
- Animal Roars at the Box Office: Earns ₹28 Crore on Day 4, Crosses ₹350 Crore Worldwide
In a stunning display of its box office prowess, Sandeep Reddy Vanga's crime drama "Animal" starring Ranbir Kapoor has continued its triumphant run, raking in an impressive ₹28 crore on its first Monday. Despite the start of the workweek, the film has managed to maintain a strong grip on audiences, displaying consistent performance since its release last Friday. The movie, which delves into the complexities of a tumultuous father-son relationship, has proven to be a box office juggernaut, accumulating a total of ₹229.5 crore in India alone. The opening day set the tone with ₹63.8 crore, followed by ₹66.27 crore on Saturday and a whopping ₹71.46 crore on Sunday. With Monday's collection, "Animal" has not only crossed the ₹200 crore mark domestically but has also achieved a staggering ₹356 crore in global box office earnings. The official Instagram handle of the film proudly declared the achievement, stating, "Box office tsunami! Weekend collection ₹356 crore worldwide gross." "Animal" boasts an ensemble cast featuring powerhouse performers such as Anil Kapoor, Bobby Deol, Rashmika Mandanna, Tripti Dimri, Suresh Oberoi, Shakti Kapoor, and Prem Chopra. The pan-India movie is set against a backdrop of violence, portraying the intense dynamic between Ranbir Kapoor's character, Ranvijay Singh, and his father Balbir Singh, portrayed by Anil Kapoor. The film, having received an A certificate from the CBFC, explores a gripping narrative set in Hindi, Telugu, Tamil, Kannada, and Malayalam. Produced by Bhushan Kumar and Krishan Kumar's T-Series, along with Murad Khetani's Cine1 Studios and Pranay Reddy Vanga's Bhadrakali Pictures, "Animal" has marked its territory as a cinematic powerhouse, captivating audiences across the nation and beyond. With its groundbreaking success, the film stands as a testament to the enduring appeal of compelling storytelling and stellar performances.
- Delhi Municipal Corporation to Generate Revenue by Leasing Karkardooma Office Complex for 30 Years
Delhi: In a strategic move aimed at bolstering revenue, the Municipal Corporation of Delhi (MCD) has officially announced its decision to lease out the state-of-the-art Karkardooma office complex for a period of 30 years. The move comes after the corporation approved the minimum rent for the office spaces at Rs. 115 per square foot. The premium office complex, situated in the Karkardooma Institutional area, boasts three blocks constructed over an expansive plot size of 22,918 square meters. Block A features a Ground plus five floors configuration, Block B comprises a Basement plus five floors, and Block C stands tall with 12 stories and a carpet area exceeding 1 lakh square feet. "All three blocks are ready to be leased out by the Corporation," affirmed the MCD. Equipped with modern amenities, the office complex ensures a conducive working environment, including air-conditioning, power backup, firefighting systems, and CCTV surveillance. Notably, it houses a robust 190 KLD Sewerage Treatment Plant, aligning with environmental sustainability measures. The strategic location of the Karkardooma office complex, combined with its contemporary infrastructure and amenities, is expected to attract a diverse range of entities seeking prime office spaces in the heart of the capital. The 30-year lease period adds a long-term aspect to this venture, providing stability for both the lessees and the Municipal Corporation of Delhi. The approval of a minimum rent of Rs. 115 per square foot reflects the corporation's prudent approach to ensure a fair and competitive leasing process. This rate is expected to be an attractive proposition for potential tenants, considering the premium location and top-notch facilities offered by the office complex. The move aligns with the municipality's efforts to explore innovative revenue-generation avenues and optimize the utilization of its assets. The leasing of the Karkardooma office complex is poised to create a win-win situation, fostering collaboration between government bodies and the municipal authority while bolstering the financial health of the Delhi Municipal Corporation.